*डाॅ अंजु सक्सेना
लौट रहे हैं प्रियतम मेरे
मां भारती का कर ऊँचा भाल।
मां भारती का कर ऊँचा भाल।
मेहंदी, कजरा, सिंदूर, पायल,
जोड़ा लाल पहन कर लिए सोलह सिंगार।
किस विध करूँ स्वागत अपने प्रिय का
विकल हृदय आज है हर्षित अपार।
द्वार पर खड़ी हो
कर रही हूँ साजन का पथ निहार।
दूर से एक झलक देख
भूली तिलक,थाली, स्वागत सत्कार।
दौड़ पिया से लिपट गई कुछ ऐसे
सिंदूरी मांग से अभिनंदित हुआ उनका भाल।
नैनन जल ने नजरें वारी
फूल से खिलकर लजा उठे कपोल
पाकर वीर साजन का साथ ।
मन ही मन विधना तुमसे यही है अर्चना
जब तक जिऊँ सुहागन रखना,
वतन की रक्षा करें प्रियतम मेरे,
मेरे सुहाग की तुम रक्षा करना।
*जयपुर
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