✍️डॉ रघुनाथ मिश्र 'सहज'
आशाओं के दीप जलाता, सावन आया।
खुशियों का परचम लहराता, सावन आया।
जन-गण है खुशहाल।
धरती हुई निहाल।
गगन मतवाला है,
मन को डाल खँगाल।
स्नेह-प्यार की धार बहाता, सावन आया।
खुशियो का परचम लहराता, सावन आया।।
कृषक है प्रफुल्लित।
जन-गण-मन प्रमुदित।
दिलों में उल्लास,
प्रेम हुआ उदित।
नये-नये अभियान चलाता सावन आया।
खुशियाँ का परचम लहराता सावन आया।
सावन में सावन होलें।
मानवता की जय बोलें।
करें जतन हम सब ऐसे,
उलझन की गुत्थी खोलें।
हृदयों का इक बाग लगाता,सावन आया।
खुशियों का परचम लहराता,सावन आया।।
सावन में अमृत बरसा।
शीतलता से मन हर्षा।
मनवा कहता 'सहज' न अब,
दाल - भारत से मत तरसा।
गम के कुहरे सभी हटाता, सावन आया।
खुशियाँ का परचम लहराता, सावन आया।
*कोटा(राजस्थान)
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