✍️शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'
दुःख की ‘दालमोठ’ खाते हैं,
आसमान की बालकनी में,
बैठे छुटपन-तारे |
पानी की टंकी के नीचे,
मधुमक्खी की भनभन,
बच्चे बीन रहे हैं गत्ते,
भूख छछनती छन-छन,
‘मुनरी’ के हाथों में चिपके,
रोटी के जुगाड़ के लासे,
महल उठाते गारे |
जली ‘पंचलाइट’ तो कितने
लेखक ‘रेणु’ हँसे हैं,
किसे नहीं यह ज्ञात कि कितने,
‘गोधन’ अभी फँसे हैं,
घूम रहे ‘महतो टोला’ में,
लेकर ‘बिजली-बत्ती’ झंडे,
‘लालटेन’ के नारे |
संसद और विधानसभाएँ,
बाँट रही हैं धंधे,
कोरोना की भेंट चढ़ो ! को,
नहीं मिले हैं कंधे,
आश्वासन की चढ़ी कड़ाही,
तले जा रहे कई साल से,
सुख के ‘शक्करपारे’ |
*गंगानगर ,मेरठ
अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.com
यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ