✍️सलोनी रस्तोगी
समय का फेर देखो, इंसान बदल गया
दो जून की रोटी के लिए, धनवान बदल गया
कभी देता था दो पाई, मेरी दिन भर की कमाई
आज रोटियों के साथ, तस्वीर भी खिचवाईं
या रे मौला दो जून की रोटी,मुफ्त में दिलाई
हम गरीबों की तकदीर की,क्या कर दी सिलाई
पर हाथों की लकीरें, दगा कर गई
पसीने की बूंदें सच, बयां कर गई
मेरी रग रग में समाया है, मेहनत से कमाना
पसीना बहा कर ही, दो जून की रोटी खाना।
*जयपुर, राजस्थान।
अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.com
यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ