✍️आकांक्षा राय
बाेझ नही बेटी हूँ मै
हीरा नही ताे माेती हूँ मै
बाेझ नही बेटी हूँ मै
है,मेरे भी कुछ सपने
कुछ अरमान
हॉं मै भी बनना चाहती हूँ
एक पहचान
पर क्यों
ये समाज हमे
पूर्ण रुप से अपनाता नही??
ये बात मुझे समझ में आता नही
हम आज इस सदी मे खड़े है??
फिर क्याे उन प्रथाओ से आज भी बधें है|
क्या हमे हक नही
कि, हम जिए खुल के
जिंदगी के फैसले ले मिल जुल के
बाेझ नही बेटी हूँ मै
हीरा नही ताे माेती हूँ मै
कन्या हूँ,मै दान नही
बेटी हूँ, मै अपमान नही
बाबा का सम्मान हूँ मै.
*सुहवल,गाजीपुर
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