*निशा झा
माँ-बेटी खाना ला दूँ
बेटी-नहीं! माँ अभी नहीं !
माँ- बेटी इतनी देर हो गई!सब ने खाना खा लिया सयानी बेटी बस तू भी खालें तो मैं बर्तन समेट लू !
बेटी-नहीं !मॉं अभी नहीं, बहुत सारा काम बाकीं है! आज कल सब आनलाईन हो गया है! सुबह आठ बजे तो, मेम क्लास लें लेंगीं! तुम जा कर सो जाओं! मैं बाद में खा लूंगीं।
माँ -दिनभर पता नहीं क्या करती रहती हो, कि रात में भी इस टिक- टिक से पिछा नहीं छूटता ! गहरी सास लेतें हुए।
बेटी-ओफ, मेरी प्यारी मॉ आजकल इस टिक- टिक से ही पुरी दूनिया चल रही हैं! तूम तनिंक भी चिंता मत करो मैं खाना खां लूंगीं! माँ अभी थोड़ा सा ही होमवर्क बाकी हैं, तुम जाकर सो जाओ, मैं सब कर लूंगीं ! चिंता मत करो
माँ –ठीक है बेटा, ये आजकल की पढ़ाईं मेरी लाड़ली को ठीक से खाने-पीने भी नहीं देतीं ! न दिन में आराम और न रात को सूकून ! माँ बुद-बुदाते सोनें चलीं जातीं हैं !
मॉ-फिर वहीं सुबह मॉ ने रसोई में जाकर देखा तो खाना जस का तस रखा हुआ था ! बेटा, बेटा,बेटा
ये क्या ? आज भी खाना नहीं ! खाया देखा तो बेटी वहीं जस की तस , टेबल और लेपटोप के बीच सोयें हुए !
फिर ! माँ बुद- बुदाते, ये आजकल की पढ़ाई - लिखाई तो न जाने क्या हो गई ! एक हमारा जमाना थां ! चार किताबें हाथ में लिए और पहुंच गए मास्टर जी के पास ! बेचारी मेरी लाड़ली..
*जयपुर, राजस्थान
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