*अशोक 'आनन'
आतंक के
सांपों को ले -
घूम रहे सपेरे दिन ।
चेहरे
गिरगिट की तरह -
बदल रहे रंग ।
किसी
अशुभ की चिंता में -
फड़क रहे अंग ।
नेह की मछलियां
रेत पर -
भुंज रहे मछेरे दिन ।
पेट हैं खाली
पर शस्त्रों से -
भरे हैं खज़ाने ।
सूरज ,
कल कौन न देखेगा -
राम जाने ।
दीये तक
झोपड़ियों से -
छीन रहे अंधेरे दिन ।
*मक्सी,जिला - शाजापुर ( म .प्र .)
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