*अशोक 'आनन'
पीड़ाओं का पर्याय है पिता ।
लाचार बहुत असहाय है पिता ।
जर्जर कंधों पर बोझा ढोता -
दीन - हीन - सा कृशकाय है पिता ।
जिससे सारे घर का दिल धड़कता -
उस घर के लिए मृतप्राय है पिता ।
प्रतिकूल मौसम में खड़ा जो रहता-
अविचल बरगद समप्राय है पिता ।
अपनों का जब भी मेला भरता -
अपनों से तब दु: ख लाय है पिता ।
उसके मन की पीड़ा न जाने कोई -
खूॅंटे से बॅंधा खच्चर प्राय है पिता ।
किसने उसका पढ़ा यहाॅ ' आनन ' -
घर में अपठित अध्याय है पिता ।
*मक्सी ,जिला - शाजापुर ( म.प्र.)
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