*नवीन माथुर पंचोली
पेड़ कोई राह का फ़िर हरा हो जाएगा।
धूप में कुछ छाँह का आसरा हो जाएगा।
वो हमारे पास जितना आ गए तो आ गए,
फासला जितना रहेगा दायरा हो जाएगा।
खुल के अपनी बात कहना ये हमारी खोट है,
इक सियासी जो कहेगा सब खरा हो जाएगा
ख़्वाब में जितने नज़ारे देखलें तो देखलें,
आँख देखें जो दिखेगा माज़रा हो जाएगा।
पेड़ -पौधे,जीव सारे जो तुम्हारे हैं सहारे,
जो सभी की फिक्र लेगा वो धरा हो जाएगा।
कर रहें हैं बात के जरिये सुलह की कोशिशें,
जो अमन की रीत देगा पैंतरा हो जाएगा।
*अमझेरा धार मप्र
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