*आशु द्विवेदी
मेरी जिंदगी सवारी है तुमने।
अपनी हर खुशी मुझ पर वारी है तुमने I
नन्हें नन्हें कदमों से जब मैं भागा करती थी।
एक निवाला खिलाने को माँ मेरे पीछे तुम दोडा करती थी।
डांट कर मुझे फिर बैठ बड़ा पछताती थी।
रुठती जो मैं कभी तो हँस कर मुझे मनाती थी।
बीमार मैं होती पर नींद तुम्हें ना आती थी।
मेरे ठीक होने की दुआ रात भर तुम करती थी।
बड़ी हो गई हूँ मैं पर तुम बिल्कुल ना बदली हो।
आज भी अपने दिन की शुरुआत! माँ मुझे देख कर ही तुम करती हो।
मुसीबत कोई भी हो तुम ढाल मेरी बन जाती हो।
इतना निस्वार्थ प्यार माँ कहाँ से लाती हो।
मोल नहीं तुम्हारी ममता का कोई।
मुझको तो जग में सबसे अनमोल माँ तुम लगती हो।
*सोनिया विहार, दिल्ली
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