*अशोक ' आनन '
तन से उजले , मन से मैले -
हो गए लोग ज़माने भर के ।
तन से पास , मन से दूर ।
ख़ुद के हाथों ख़ुद मज़बूर ।
स्वार्थ की उंगली थाम सफ़र में ;
निकले , फिर भी हो गए चूर ।
तन से बगुले , मन से कौए -
हो गए लोग ज़माने भर के ।
ख़ुद की डफली , ख़ुद के राग ।
दामन पर जिनके लाखों दाग़ ।
हारे अक्सर , कभी न जीते ;
फ़िर भी आए कभी न बाज ।
तन से दहले , मन से नहले -
हो गए लोग ज़माने भर के ।
दिवा - स्वप्न - से आंखें सज्जित ।
अपनी पूॅंजी कर दी अर्पित ।
आज सड़क पर आ गए फ़िर भी ;
तनिक नहीं जो ख़ुद से लज्जित ।
तन से बॅंगले , मन से पगले -
हो गए लोग ज़माने भर के ।
*मक्सी,जिला - शाजापुर ( म..प्र.)
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