दुनिया में 70 लाख से ज्यादा संक्रमित और 4 लाख से ज्यादा लोगों के जीवन को लीलने वाला कोरोना (कोविड-19) वायरस एक महामारी की तरह पूरी दुनिया में फैला हुआ है. इस महामारी के निदान के लिए अभी तक कोई दवा/वैक्सीन/टीका आदि के न होने से दुनिया में कर्फ़्यू और लॉकडाउन के माध्यम से कम से कम मानव क्षति हो, लोगों को सामाजिक दूरी बनाये रखने, स्वच्छता और सुरक्षा के लिए नियमित हाथ धोने, लक्षण दिखाई देने पर शीघ्र उपचार हेतु पहल करने, बिना मास्क पहने घर से बाहर न निकलने, जैसे कई काम करने के लिए एक जुट हो कर लोगों ने इस लड़ाई को लड़ने के अपने-अपने तरीकों से अनेक कारगर उपाय किये. कोरोना वारियर्स ही नहीं आम आदमी ने भी अपने-अपने तरीके से पिछले 60 दिनों में जनता कर्फ़्यू, लॉकडाउन 1,2,3, और 4 में यादगार भूमिका निभाई है.
कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण है, इसलिए साहित्यकारों ने भी गद्य, पद्य में रचनायें रच कर सम्पूर्ण दुनिया में संदेश दिये हैं. उन्हीं में चर्मण्वती के किनारे बसे राजस्थान की परमाणु नगरी कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार एवं छंदकार डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ ने लॉकडाउन के दौरान नित्य छंदाधारित काव्य रच कर एक अनोखा संदेश दिया है. ‘ताकि सनद रहे’ इसे सार्थक करते हुए लॉकडाउन के दौरान विभिन्न संदर्भों पर 46 रचनाओं का उनका एक संकलन गुटका (छोटे आकार की पुस्तक) ‘कोरोना (कोविड-19)’ प्रकाशित हुआ है. इस गुटका की विशेषता है कि इसमें प्रकाशित रचनायें जैसे- छंद, मुक्तक, गीतिका, गीत, कविता सभी किसी न किसी छंद पर आधारित हैं, जिसका विधान सहित स्पष्ट उल्लेख उन्होंने गुटका में किया है.
गुटका की विशेषता-
‘’छंद काव्य की आत्मा और काव्य संसार का शास्त्रीय ज्ञान है.’’ जिस प्रकार भारतीय शास्त्रीय संगीत की राग रागनियों में निबद्ध हजारों मधुर गीत आज भी प्रख्यात हैं और गुनगुनाये जाते हैं, संगीत में जिस प्रकार थाट से अनेकों राग रागनियों का निर्माण हुआ है उसी प्रकार हिंदी छंद साहित्य में विभिन्न छंद गणों (यगण, मगण, रगण, नगण आदि) पर आधारित होते हैं. छंदों के बार में संक्षिप्त जानकारी देते हुए ‘आकुल’ बताते हैं कि छंद मात्रिक और वार्णिक दो प्रकार के होते हैं. वार्णिक छंदों में केवल पूर्ण वर्ण की गणना होती है और मात्रिक छंदों में गुरु और लघु मात्रा से मात्राओं की गणना की जाती है. इन्हीं मात्राओं से गणों का निर्धारण होता है. इन गणों के सतत प्रयोग से निबद्ध काव्य रचनायें, रचना को गेय, व्यवस्थित और श्रेष्ठ बनाती हैं. जिस प्रकार लोकरंजन छंदों जैसे घनाक्षरी, दोहा, रोला, चौपाई, लावणी, विधाता, वीर आल्हा, छंदों का प्रयोग लोकगीतों, कीर्तन, भजन आदि में आज भी किये जाते हैं, उसी प्रकार अनेक छंद हैं, जो प्रयोग में नहीं लाये जाने के कारण लुप्त प्राय की स्थिति में आ गये हैं, जिनका ज्ञान आज काव्य रसिकों, रचनाकारों को न होना चिंता का विषय है. लोकचर्चित ग्रंथ रामायण और महाभारत सम्पूर्णत: छंदाधारित ग्रंथ है. यही कारण है कि ‘महाभारत’ विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य माना गया है और ‘रामायण’ विश्व का सर्वाधिक उपयोग में लाया जाने वाला धार्मिक ग्रंथ है.
लोक चर्चित कई श्लोकों, पदों के छंदों में रचित कुछ उदाहरण देते हुए वे बताते हैं कि प्रख्यात सरस्वती वंदना ‘’या कुंदेंदुतुषार हार धवला.... शार्दूलविक्रीडित छंद पर, मंगलाचरण ‘स शंखचक्रं सकिरीटकुंडलम् सपीतवस्त्र सरसीरूहेक्षणं..... छंद वंशस्थ पर, ‘’अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं... अरुण छंद पर, अष्टाक्षर मंत्र ‘'श्रीकृष्ण शरणं मम’’ अनुष्टुप् छंद पर , ‘’नंद के आनंद भये जै कन्हैया लाल की’’ छंद मुक्तामणि पर, ‘’कर्पूरगौरं, करुणावतारं, संसार सारं भुजगेंद्र हारं’’ इंद्रवज्रा छंद पर, ‘’सदा वसंतंहृदयारविंदे भवं भवानी सहितं नमामि’’ छंद उपेंद्रवज्रा पर आधारित हैं. इसी प्रकार अनेक चर्चित गीत भी छंदों पर रचे गये हैं, जैसे- दिल ढूँढता है, फिर वही.... छंद सरसी पर, ‘’ठुमक चलत रामचंद्र...छंद उड़ियाना पर, ‘’बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ...छंद सुशीला पर, ‘’कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दें...छंद शक्ति पर, ‘’सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा...छंद दिग्पाल पर.... ‘’जन गण मन अधिनायक जय है.....छंद सार पर, ‘’मेरे रश्के कमर तूने पहली नज़र... छंद गंगोदक पर आधारित हैं. श्के छंद उड़ियाना पर, बसयही
आकुल रचित इस ‘गुटका’ में दोहा, रोला, सार, लावणी, कुंडल, उड़ियाना, सिंह विलोकित, चौपाई, सरसी, चामर, विधाता, ताटंक, सुमेरु, शक्तिपूजा, मोदक, मधुवल्लरी, आल्ह, कुंडलिया, सार्द्ध मधुमालती, मधुमालती, मरहट्ठा माधवी, रजनी, अड़िल्ल छंदों में रचित रचनाओं ने इसे पठनीय व संग्रहणीय बना दिया है. ‘आकुल’ ने छंद का नाम ही नहीं कई रचनाओं में उसका संक्षिप्त छंद विधान लिख कर छंद के ज्ञान का एक अनुकरणीय कार्य किया है.
‘आकुल’ ने बताया कि जिस प्रकार आधुनिक नृत्य का प्रभाव नृत्य में नज़ाकत खो रहा है, बिना शास्त्रीय संगीत की राग रागनियों पर आधारित गीतों में माधुर्य खो रहा है, उसी प्रकार मेरा मानना है कि आज छंदों के ज्ञान और प्रयोग के अभाव में हमारा काव्य संसार पथभ्रष्ट हो रहा है. युगों से चली आ रही हमारी छंद परम्परा को भूलने का दुष्परिणाम आज स्पष्ट देखा जा सकता है कि महाभारत से चली आ रही काव्य परंपरा आज ‘’हाइकु’’ पर आ पहुँची है. हालाँकि छंदाधारित पर मेरी दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, परंतु, मेरा कोरोना काल में यह छोटा सा प्रयास छंदों के लिए एक दिशावाही बने, ऐसी कामना से ही महामारी का ग्रास बने खोये हमारे अपनों को यह एक श्रद्धांजलि है.
कोरोना काल में ‘आकुल’ का छंद आधारित ‘गुटका’ भले ही छोटे आकार में है किंतु इसका प्रभाव बहुत गहरा बन पड़ा है. बानगी स्वरूप छंद ‘सरसी’ पर आधारित एक मुक्तक पठनीय है-
लक्षण हों सर्दी ज़ुकाम के, उतरे नहीं बुखार.
गला कटे सूखी खाँसी से, करना तुरत विचार.
हो तकलीफ़ साँस लेने में, बना रहे सिरदर्द,
कोरोना के लक्षण हैं ये, करें शीघ्र उपचार.
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