*डॉ. अहिल्या तिवारी
जब पढ़ती हूँ
कोई कविता, तब
मेरा मन
दुविधा में
पड़ जाता है,
क्यों कहते हैं लोग
कवि को पागल
क्या पागल की लेखनी
इतनी सुन्दर होती है
कि, उतर आती है
काव्य सुन्दरी
पन्नों पर
क्यों पागल की लेखनी
काम करती है
तलवार का।
क्या पागल भी
दिखा सकते हैं रास्ता।
जब थक जाती हूँ
सोच कर, तो मेरा मन
समझ जाता है कि
पागल कवि नहीं
पागल दुनिया है
जो उल्टे-सीधे
कारनामों से हिला देती है
कवि का हृदय
झकझोर देती है
किसी की चीख
रुला देते हैं
किसी के आँसू
और कोई ”कवि मन“
उबाल हृदय का
निकाल देता है
पन्नों पर।
रायपुर, छत्तीसगढ
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