*प्रेम बजाज
अहदे - वफ़ा को हमें मर्ग़ तक निभाना है
कुछ तो ज़िद है , कुछ उम्मीद-ए- ज़माना है ।।
कोई फ़ायदा नहीं उन्हें समझाने का
राएगाँ हो गई ज़िन्दगी दिल को समझाना है ।।
जीने की तो वह अब तक ख़बर ना थी
हमें मर कर तो अख़बार में आना है ।।
ता-ऊम्र खुद को देखते रहे औरों की नज़र से
अब अपने दिल को ही आईना बनाना है ।।
मिलना है ज़रूरी , वरना मर जाएंगे तुम बिन
तुम्हारे सिवा किसी को ना अपना बनाना है ।
दिल से खेलता रहा"प्रेम* हर कोई बना कर बहाने
कम्बख़्त अब ज़िन्दगी को भी बहाना बनाना है ।
*जगाधरी ( यमुनानगर)
मर्ग़=मौत, राएगॉ=व्यर्थ
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