*डॉ.देवश्री शर्मा
मैं तन्हाई में भीड हूँ
पर भीड में ,मैं तनहा हूँ।
बातों में हूँ खामोशी
ख़ामोशियों में महफ़िल हूँ ।
समंदर में हूँ सूखा रेगिस्तां
रेगिस्तान में बारिश की पहली बूँद हूँ।
उजालों में हूँ परछाईं
अंधेरे में चमकता तारा हूँ।
जीत में हूँ छिपी हार
हार में छिपी जीत हूँ।
ख़ुशी में हूँ अख़ों की नमी
ग़म में लबों की हसीं हूँ।
कतराती हूँ मौत से
कहलाती ज़िंदगी हूँ।
पहली किलकारीं,पहली बारिश,पहला प्यार
हर वो ख़ुशी का एहसास हूँ।
थम जाऊ तो हूँ अंत
चलतीं रहु तो हर पल आग़ाज़ हूँ।
जीना मुझे है एक कला
कला कीं में कदारदान हूँ।
करो मेरी कुछ कद्र यारों
मिलती सिर्फ़ ख़ुशनसीबों को हूँ।
कभी जटिल,कभी दुसाध्य
तो कभी बिलकुल सरल हूँ।
कभी पहेली,कभी उलझन
तोह कभी एक संघर्ष हूँ।
जीना मुझे आसान नहीं
पर सीख लो तो अभिभूत हूँ।
निभाती हूँ साथ ताउम्र
यथार्थ में बस -एक साँस हूँ।
*महालक्ष्मी पूर्व मुंबई
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