*अशोक 'आनन'
घर में
खड़ी हो गई -
एक दीवार और ।
धूप , चूल्हे तक -
अब आ नहीं पाएगी ।
व्यथा दहलीज भी -
अब कह नहीं पाएगी ।
अंधेरा खड़ा
बन -
एक साहूकार और ।
मकड़जाल तक भी आए -
मेरे हिस्से में ।
शेष बचा न कुछ -
राम - लखन के किस्से में ?
बीच छोड़ गया
डोली -
एक कहार और ।
किलकारियां कर सकीं न -
देहरियां पार ।
अचारों में भी लग गई -
फंफूदी इस बार ।
गिद्ध - दृष्टि
अपनों की -
एक स्वीकार और ।
घरों में रोज़ बंट रहीं -
मां की कथरियां ।
अपनों को अब बंद हुए -
द्वार और खिड़कियां ।
ज़िंदगी में
स्वप्न का -
एक मज़ार और ।
घरों में सूख गईं -
रिश्तों की तुलसियां ।
हृदय में उग आईं -
स्वार्थ की नागफनियां ।
सोचता हूं
निभा लूं -
एक किरदार और ।
मक्सी जिला - शाजापुर (म. प्र.)
अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.comयूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ