*संगीता श्रीवास्तव सुमन
कैसी तल्खी है क्या फ़जीहत है,
कैसी गफ़लत है, कैसी नफ़रत है |
मेरी हर साँस देश की ख़ातिर
तूने सोचा भी कैसे मुहलत है |
पार करना नहीं तुझे आसाँ
हद में रहना मेरी हिदायत है |
नाम लेकर वतन का निकला मैं
आज सरहद पे फिर बग़ावत है |
छीलकर गोलियाँ ये तन मेरा
खाक़ कर दें भी तो इनायत है |
अम्न की ख्वाहिशों ने रोका था
यूँ जाँ पे खेलने की आदत है |
है तिरंगा मेरा मुझे प्यारा
इसके हर रंग की फ़जीलत है |
झूठ धोखे से हम जो हारे 'सुमन'
फिर न कहना कि ये क़यामत है |
*छिंदवाड़ा मप्र
अकीक़ लफ़्ज़-
अज़मत - बड़ाई /फज़ीलत - प्रतिष्ठा /ज़लालत - अपमान /इनायत - कृपा
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