*हमीद कानपुरी
बेबसी पर भी श्रमिक की हमको लिखना चाहिए।
दर्द सीने का कहीं लफ़्ज़ों में ढलना चाहिए।
इक ज़रा सी चूक पर मिलती सज़ा भारी बहुत,
इक मिनट भी यूँ न गफ़लत में निकलना चाहिए।
काम हो बेहद ज़रुरी ले के पूरी एह तियात,
सोच करके खूब अब घर से निकलना चाहिए।
अब रिवायत दे न पायेगी तरक़्की़ ठीक ठाक,
अब तरीकोंं को हमें अपने बदलना चाहिए।
रातरानी जो लगा आये कभी थे बाग में,
उससे अब वातावरण पूरा महकना चाहिए।
*अब्दुल हमीद इदरीसी,बिरहाना रोड, कानपुर
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