*कीर्ति शर्मा
बरसात ! मौसम की पहली बरसात कितनी सुहानी होती है | बारिश आँगन, पेड़-पौधे और माहौल को तो भिगोती ही हैं , साथ मैं मन को भी भिगो देती है | बारिश की पहली फुहार हमारे तन - मन को आनंदित कर देती है |
एक ऐसी ही भीगी हुई सुबह थी , रात से बारिश हो रही थी मौसम खुश- गवार हो गया था | मैं अपने पलंग पर लेटी -लेटी मौसम का आनंद ले रही थी | बैडरूम की खिड़की से बाहर के नज़ारें दिख रहे थे , बच्चे खेल रहे थे , कोई छाते में था, कोई रेनकोट में खेल रहा था , मैं यह सब देखकर खुश हो रही थी | चाय की तलब हो रही थी पर चाय बनाने की इच्छा नहीं हो रही थी , फिर भी उठ कर चाय बनायीं और बेड़ पर आकर चाय पीने लगी और ख्वाबों में खो गई |
वह दिन भी बारिश का था | मैंने माँ को आवाज़ लगायी, “ माँ, चाय ला दो|”
“यह लो तुम्हारी चाय|”
मैंने जल्दी- जल्दी चाय पी और कॉलेज के लिए निकल गयी | बारिश की हलकी - हलकी फुहार मेरे चहरे पर आ रही थी, अच्छा लग रहा था | थोड़ा आगे बढ़ते ही बारिश ने ज़ोर पकड़ लिया और मुझे मेरी माँ की बात याद आ गयी , “अनुराधा , बारिश हो रही है! आज कॉलेज मत जाओ |”
“माँ ज़रूरी लेक्चर है, जाना ज़रूरी है| आप चिंता मत कीजिये मैं पहुँच जाउंगी |”
इस बारिश से बचने के लिए मैं एक पेड़ के निचे खड़ी हो गई| तभी, पूरी तरह से भीगा हुआ एक लड़का मोटरसाइकिल लिये पेड़ के निचे खड़े होने की ईजाजत मांगने लगा| उसके पूछने के अंदाज़ ने मुझे मोहित कर दिया | लेकिन मैंने बिना कुछ बोले गर्दन हाँ में हिला दी | वो कौने में खड़ा हो गया | बारिश थमने का नाम ही नहीं ले रही थी | कुछ देर बाद वो लड़का मुझसे बात करने के बहाने ढूंढने लगा | कुछ देर सोच विचार करने के बाद वह बोला ,
“ लगता है की आज बारिश नहीं रुकेगी ” मैंने गुस्से में पलट कर उसकी ओर देखा
वह हकलाते हुए बोला की , “ मेरा मतलब है की दो - तीन घंटे चलेगी |”
कुछ देर बाद, बहुत अदब से उसने मुझसे पूछा -“ आप चाय पियेंगी? ठंडे मौसम में गरम-गरम चाय की बात ही कुछ और है|”
हल्का सा शरमाते हुए मैंने कहा , “ ठीक है | पर चाय मिलेगी कहाँ ? ”
“ पास में ही एक चाय की टपरी है | ” यह कहकर , वो चाय की टपरी की ओर भागा |
चाय देते हुए उसने मुझसे कहा , “ चाय में थोड़ा बारिश का पानी भी मिल गया |” और वो हँसने लगा “ कोई नहीं ” कहकर मैं भी हँस दी और बातों का सिलसिला शुरू हो गया |
“आप का नाम ?”
“अनुराधा, मैं कॉलेज में पढ़ती हूँ | ”
“अच्छा | मैं अशोक , मैं इंजीनियर हूँ | “
बातों ही बातों में हमने एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान लिया था | बातों का कोई अंत नहीं था लेकिन बारिश थम चुकी थी |
हम दोनों अपने अपने रास्ते चले गए |
शाम को कॉलेज से घर आयी तो देखा की वो लड़का अपने माता जी पिताजी के साथ मेरे घर में बैठा था | मैं यह देखकर चौंक गयी और थोड़ा घबरा भी गयी |
इतने में मेरी चाय ख़तम हो गयी और डोरबेल ने मेरी तंद्रा भंग करदी | मेरे पति अशोक अपने खेल से लौट आये थे |
“बारिश में खेलने क्यों गए थे ? ”
वह हलकी सी मुस्कान को छुपाते हुए बोले “ बारिश से पुराना और मीठा नाता है |” और मुझे आलिंगन बद्ध कर लिया |
इस बारिश ने मुझे अशोक जैसा हमसफ़र दिया और मेरे तन - मन को भिगो दिया | हम दोनों चाय की चुस्कियों के साथ पुरानी यादों में खो गये |
*गुजरात सीमेंट वर्क्स टाउनशिप ,गुजरात
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