*अलका 'सोनी'
बादल सा मैं घिर जाता हूं
फिर बरसे बिन रह जाता हूं
बीते लम्हों की यादों को
रख सिरहाने सो जाता हूं
तेरे प्रश्नों के उत्तर लेने
अपने ही अंदर जाता हूं
मुश्किल लगता है अब जीना
देख कर बाहर डर जाता हूं
निकले कोई घर से कैसे
सूनी राहों से डर जाता हूं
कैसी यह बीमारी फैली
देने कहीं दवा जाता हूं
अपनों की चिंता है मुझको
वापस लौट कर घर जाता हूं
औरों को कम पड़ ना जाए
अपनी रोटी दे जाता हूं।
*बर्नपुर, पश्चिम बंगाल
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