*डॉ कौशल किशोर श्रीवास्तव
अक्षर बिके हुए हैं जुबा है बिकी हुई
सब खा रहे हैं मुफ्त की रोटी सिकी हुई
वे कह रहे हैं ट्रेन की रफ्तार तेज है
हमको तो लग रहा है कि वह है रुकी हुई
तुम कहते हो मीनार की ऊंचाई बहुत है
ऊंचाई बहुत है तो क्यों वह है झुकी हुई
मजबूत सहारे सियासत तोड़ रही है
जो लटके हैं उससे वह उन पर है टिकी हुई
हमको तो भूखा मार दिया दोस्त बनाकर
खुद जी रहे हो घी है एक कथडी ढकी हुई
*छिंदवाड़ा
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