*भावना गौड़
ऐसा मंजर
जब आंखों के सामने आता है
मन झकझोर जाता है
रोटी की भूख से तड़पते ये मासूम
इक इक निवाला को खाते है
तो बहुत दुःख होता है
ये ईश्वर कैसी मजबूरी है
किसी को इतना दिया कि
थोड़ा खाया है फेक दिया
किसी को इतना लाचार बना दिया
दो समय की रोटी भी नसीब नहीं
आज इन बच्चों को मुस्कराते देखा
वो भी खाने को देखकर
इनका बचपन भी कितना अभागा है
खेलने कूदने की उम्र में
अपने भाई बहनों को सम्भालना
साथ में दर दर भी भटकना
कितनी बड़ी मजबूरी है
हम कितने अनभिज्ञ है ऐसे जीवन से
और ये बच्चें कितना लाचार
आज रोटी की भूख का अनुभव हुआ
हम क्यूँ ना ऐसे बच्चों की सहायता करें
सोचना नहीं कुछ करना है
एक संकल्प ले अभी से
खाने में उतना ले जितने की हमें जरूरत है
जब भी कही पार्टी में जाते हैं
डस्ट बिन में खाना फेंकने का प्रयत्न नहीं करें
रोटी बड़ी भाग्य से मिलती हैं तो इसकी
कीमत भी पहचानो बाबू बस दो रोटी....
*भावना गौड़,ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.comयूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ