*आयुष गुप्ता
मुझे हर शय में वहीं चेहरा नज़र आता हैं,
जमीं आसमां जिधर देखूँ उधर आता है।
पहले आती थी वो ख्वाब में कभी कभी,
अब एक उसी का ख्वाब अक्सर आता है।
जाऊँ किसी भी सम्त मैं घर से निकल कर,
जाने कैसे हर राह में उसी का घर आता हैं।
देखूँ जो तुझे किसी ग़ैर के साथ तो सनम,
मेरे सीने में एक शोले सा उतर आता है।
ऐसा नही कि मुझे तुझ पर ऐतबार नही है,
फिर भी दिल में तुझे खोने का डर आता है।
है तुझसे जुदाई तय मेरी ये सब कहते है,
तुझे पाने का ख्याल दिल मे मगर आता है।
*आयुष गुप्ता, उज्जैन
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