*पूजा झा
रोके न रुके अब अरमां मेरे
बिखर न जाएं राहों पे,
बड़े जतन से रखा था जोड़े
आंसू को आस के धागों से,
बिखर के ऐसे टूटे हैं अब
जैसे मोती धागों से
ना तौल मेरे अरमानों को तू
अपने इन हालातों से।
कीमत क्या कोई आंके इनका
अनमोल धरोहर है ये मेरी,
याद में जो झरते हैं हरपल
बेसब्री से व्याकुल हो के,
जैसे लिपट जाती हो चिलमन
अक्सर हंसी रुआबों से
ना तौल मेरे अरमानों को तू
अपने इन हालातों से।
खोया तो मैंने सब अपना
तोड़ के हरपल सुंदर सपना,
धुन्ध की छटा सी बिखरी है
शीत की काली रातों से,
क्योंकर रहे हम खोये
वक़्त के उन जज्बातों से
ना तौल मेरे अरमानों को तू
अपने इन हालातों से।।
*पूजा झा,हाजीपुर
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