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मेरा मन बहा



*पुष्पा सिंघी


नीचे झाँका मैंने
रद्दी वाले की आवाज सुनकर
और कहा उसको
ऊपर आने के लिए....


देखती हूँ मैं
मोटी रस्सी से बँधी हुई
ढ़ेर सारी काॅपी-किताबें
अरे हाँ... पुराना वर्ष खत्म हुआ
विद्यार्थी करेंगे अब
नयी कक्षा में प्रवेश....


जिन्होंने साथ दिया
विद्या अर्जित करने में
पेन-पेन्सिल के सहारे
सुधियाँ संजोयी पूरे वर्ष की
अगले पड़ाव में जाने हेतु
प्रगति-मानक जो बनी
वही काॅपी-किताबें बिक गयी
चंद सिक्कों में....


सच , आज तो रद्दी बनीं
पर उम्र के किसी पड़ाव पर
वो याद बहुत आयेंगी
और चाहकर भी
न लौटा पायेंगे उन सबको
मेरी तरह...हाँ, मेरी तरह..!!


*पुष्पा सिंघी , कटक


 


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