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मजदूरों के हाथों में यहां छाले पड़े हुए



*प्रेम पथिक
मजदूरों के हाथों में यहां छाले पड़े हुए
तिजोरियों में कैद वहां उजाले पड़े हुए
                 
कारखानों में बहाते रातदिन जो पसीना
मुँहसे उनके कितनी दूर निवाले पड़े हुए
               
बड़ी मेहनत से उगाई थी उन्होंने फसलें
खेतों में सभी उनके आज पाले पड़े हुए
                 
सिसकियाँ है दफन दीवारों में जिनकी  
उन राजमहलों में आज जाले पड़े हुए

सिंह जैसी गर्जनाएं किया करते थे जो
होठों पर उनके आज तो ताले पड़े हुए

दिनमान- सी तेजस्विता के जो धनी थे
उनके चेहरे आज क्यों  काले  पड़े हुए

सोने की चिड़िया था हमारा देश 'पथिक'
रोटियों के आज हर तरफ लाले पड़े हुए

*प्रेम पथिक , उज्जैन 


 


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