*रामगोपाल राही
खुशी खुशी नित आती जाती ,
ईट भट्टों पर मजदूरिन |
दिन भर ईट बनाती रहती ,
तन्मय होकर मजदूरिन ||
गार के जैसे गार, हो रही
लिपटी गार में मजदूरिन |
मिट्टी घोल को भरे -धूप की,
मार सह रही मजदूरिन ||
क्या क्या है अधिकार सुविधा ,
अनभिज्ञ हैं मजदूकिन |
नियम हितैषी -सरकार के ,
नहीं जानती मजदूरिन ||
बस काम से काम उसे है ,
श्रम साधिका का मजदूरिन |
श्रम की पूजा कर्म न दूजा ,
मग्न इसी मैं मजदूरिन ||
मालिक मेहरबान रहे बस -
यही चाहती मजदूरिन |
खुशी खुशी ले मेहनताना ,
दे मालिक, ले मजदूरिन ||
जितना ज्यादा करें- मिलेगा ,
यही जानती मजदूरिन |
इसी लिए जी तोड़ -काम में,
लगी रहे नित मजदूरिन |
त्योहार - दीवाली, होली ,
मोद मनाती मजदूरिन |
मालिक दे उपहार मे बर्तन,
खुश हो जाती मजदूरिन ||
शोषण का मतलब न समझे,
तनिक न सोचे मजदूरिन |
श्रम, कर्म, कर्तव्य समझे,
काम ही पूजा मजदूरिन ||
जो मिलता उसमें ही खुश हो,
करे गुजारा मजदूरिन |
नहीं ईर्ष्या ,उसे किसी से,
रहे मौज में मजदूरिन ||
हक से वंचित, - खर्च सभी कुछ,
स्वयं उठाती मजदूरिन |
बच्चे पढ़ते - घर किराया,
स्वयं चुकाती मजदूरिन ||
टीवी पंखे, कूलर घर मे,
रखती अपने मजदूरिन |
पति साथ -बच्चों के संग में,
हर्षा रहती मजदूरिन ||
*रामगोपाल राही,लाखेरी
जिला- बूँदी (राज0)
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