*अशोक ' आनन '
देह - कुशन में
पिन - सी चुभती -
मई - जून की धूप ।
सूरज
धरा पर उड़ेल रहा -
आसमान से लावा ।
बूढ़ा बरगद
कर रहा -
घनी छांव का दावा ।
मन - मछलियां
गटक रहीं -
रेत - नेह का सूप ।
बिना निचोड़ ही
सूख गया -
तर- रूमाली मन ।
गर्म तवे - से
तप रहे -
पथरीले घर के दामन ।
भील - कन्या - से
अब सुखाने -
ताल , नदी और कूप ।
लू की धूनी ताप रहे
साधक पेड़ -
दोपहरी में ।
बदन , बर्फ - से पिघल रहे
सूरज की -
कोर्ट - कचहरी में ।
सज - धजकर निकली
सुबह का अब -
बिगड़ गया रंग - रूप ।
*अशोक 'आनन'
मक्सी ,जिला - शाजापुर (म.प्र.)
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.comयूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ