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क्षितिज



*राजीव डोगरा 'विमल'

जीवन क्षितिज के अंत में 

मिलूंगा फिर से तुमको,

देखना तुम

मैं कितना बदल सा गया हूं

मिलकर तुमको।

 

जीवन क्षितिज के अंतिम 

छोर में देखना

मेरे ढलते जीवन की 

परछाई को,

कितनी बिखर सी गई है

मिलकर तुमको।

 

जीवन क्षितिज के अंत में 

देखना मेरी 

डगमगाती सांसों को,

कितना टूट सी गई है 

मिलकर तुमको।

*कांगड़ा हिमाचल प्रदेश 

 

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