*हमीद कानपुरी
कर शरारत मुस्कुराएगा कभी।
अश्क बनकर झिलमिलाएगा कभी।
पास आकर दूर जाएगा कभी।
ख्वाब में आकर सताएगा कभी।
दूर से ठेंगा दिखाएगा कभी।
बात दिल की आ सुनाएगा कभी।
रूठने का है अलग अंदाज कुछ,
दूर ज़्यादा रह न पाएगा कभी।
तीरगी का दूर होना लाजिमी,
बल्ब कोई आ जलाएगा कभी।
इश्क़ का होने लगा उसपर असर,
अब नहीं नजरें चुराएगा कभी।
इक धरोहर छोड़ जाएंगे हमीद,
गीत ग़ज़लें कोई गाएगा कभी।
*हमीद कानपुरी
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.comयूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ