*कैलाश सोनी सार्थक
हो जिसमें नूर वो इक रोज़ क्यों बेनूर होती है
जिसे हम चाहते हैं वो ही दिल से दूर होती है
तुझे इतना पता है बस सदा मुफ़लिस दुखी रहते
परेशाँ वो भी हैं दौलत जहाँ भरपूर होती है
ज़माने के रिवाजों ने सताया है हमेशा ही
मुहब्बत इनके हाथों रोज़ चकनाचूर होती है
यहाँ धनवान कोई नाम वाला बोल दे आकर
सभी ने मान ली जो बात बेदस्तूर होती है
किसे घर छोडना अच्छा कभी लगता बता ऐ दिल
पराए घर को जाती बेटी तो मजबूर होती है
दिखा सौ बार वो मुँह देखकर के फेर लेता था
नहीं बदला है जिसकी सोच ही मगरूर होती है
करो माँ बाप की सेवा ये सोनी चाहता सबसे
हमेशा ही दुआ उनकी सुखों से चूर होती है
*कैलाश सोनी सार्थक, नागदा ज., उज्जैन
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