अकस्मात आई महामारी कोरोना के चलते हुए लॉक डाउन के दौरान, मैंने महसूस किया कि, बहुत दूर रहने वाले लोगों के बीच में भी परस्पर जमकर विश्वास पैदा हुआ है। मनुष्यता का मूल्य बढ़ने के साथ ही, वह यशस्वी तथा गौरवान्वित भी हुई है। महामारी की पीड़ा झेल रहे प्रत्येक व्यक्ति को लगा कि, उसके दुःख में वह अकेला नहीं है, बल्कि बहुत से जाने, अनजाने लोग भी उसको सहयोग करने हेतु तत्पर खड़े हैं। मदद के नाम पर तन, मन, धन, जो जितना जिसके पास था, वह उसने बड़ी प्रसन्नता से , पीड़ितों को अर्पण कर, इस महामारी से मुक्ति दिलाने में जरूरतमंदों को दिया। कोरोना ने आकर ,हम सबको यह भी महसूस कराया कि, किसी भी जानलेवा बीमारी अथवा मुसीबत में हम सब सहभागिता का भाव रखें, तो उनसे बहुत जल्दी छुटकारा पाया जा सकता है। प्रत्येक दृष्टि से बहुत खतरनाक होने के बाद भी ,यह महामारी हमारे लिए कुछ अर्थों में प्रेरणादायी भी रही है। इसने आकर हमको यह बतलाया कि, अब हमारा आगामी जीवन ,हम लोगों को कैसे सावधानीपूर्वक जीना है, औऱ अपनी भावी पीढ़ियों को सुरक्षित जीवन जीने हेतु क्या, क्या हिदायतें देना है।
*ललित भाटी, इंदौर
इस विशेष कॉलम पर और विचार पढ़ने के लिए देखे- लॉकडाउन से सीख
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