*पूजा झा
बेसब्र दिल को समझाते हैं ऐसे
गम में डूबे इंसान बहुत हैं।
रुलाया है अक्सर अपनों ने मुझको
गैरों के लेकिन एहसान बहुत हैं।
सुकूँ गंवारा होता नहीं सबको
इस कदर कई परेशान बहुत हैं।
अपने ही शामिल गुनहगारों में लेकिन
जीने का फिर भी अरमान बहुत है।
होते हैं सितारे बेशुमार क्षितिज में
टूटते तारों की पहचान बहुत है।
रूठी बेमुरौवत किस्मत भी अपनी
ख्वाईशें हैं पाले, नादान बहुत हैं।
थक गए अब समझते हैं लेकिन
कब्र में ही शायद आराम बहुत है!
*हाजीपुर,जंदाहा
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