*पुष्पा सिंघी
ओ अम्फान !
अनाहूत पाहुन
क्यों उत्सुक हो तुम
यहाँ आने के लिए....
बसे हैं बहुत लोग
समुद्र तट पर
शरण लेनी पड़ेगी उनको
किसी आश्रय स्थल पर....
चिन्तित हैं मछुआरे
मुँह बाये खड़ा है
रोजी-रोटी का सवाल
कहाँ जायेंगे वे सब....
यूँ भी नचा रहा है
कोरोना यहाँ-वहाँ
कैसे रह पायेगी
सोशल डिस्टेन्सिंग....
गिन रहा है अन्तिम साँसें
मास्क लगाये हुए
हरिया का बूढ़ा बापू
न जाने क्या होगा....
पूरे दिनों से हैं चंदु की बहू
कैसे जायेगी
बिन सैनेटाईज किये हुए
जर्जर अस्पताल में....
कहाँ बचेगी अब
कान्हू की झोंपड़ी
क्या खायेंगे भूखे बच्चे
टिप-टिप पानी में....
चूल्हा ठंडा होगा
नुक्कड़ वाली दुकान का
बहुत रूलायेगी लोगों को
चाय-पान की तलब....
क्यों चले आते हैं प्रत्येक वर्ष
तुम्हारे भाई-बहन
किसे सुहाते हैं भला
ये देशी-विदेशी नाम वाले....
माना कि
मुश्किलें तो कुछ कम नहीं
पर हमें हरा सके
किसी में भी इतना दम नहीं....
आये और गये यहाँ
न जाने कितने ही चक्रवात
वन्दे उत्कल जननी में
खिले हैं सदैव पुष्प-पात...!!
*पुष्पा सिंघी , कटक
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.comयूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ