*भावना ठाकर
ये गहरा सन्नाटा बहुत कुछ कहता है सुनों
खिलखिलाता जहाँ कभी बसता था यहाँ सुनों
कालखण्ड में धधक रही मौत की ज्वाला
मानव मन से उठती पीड़ा की चित्कार सुनों
ये इंसानी मेले का मंज़र कहाँ खो गया
दिशाओं की चीखों का कहर है बजता सुनों
गलियाँ सूनी रास्ते रोते पथरा यहाँ अंधेरा
हर देश से आ रही मातम की ये शहनाई सुनों
भोर सुहानी निगल गया कोरोना ये काला
रश्मियों की रौनक से बहती है सूनी सदा सुनों
काल के आगे घुटने टेके बंदी बना इंसान
मजबूरी की गाथा किसी गरीब की जुबाँ सुनों
दौर ये कैसा दिखा रहा समय बड़ा शैतान
हर कलम से गूँजे लाॅक डाउन की महिमा सुनों
मृत्यु खड़ी हर सर पर करती हाहाकार
शोर सजे शहरो से बहे मरघट सी आवाज़ सुनों
ईशश जाने अब क्या होगा आगे चिरकाल
गरलमय अमोघ अस्त्र मृत्यु घंट की आह सुनों
*भावना ठाकर, बेंगलोर
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