*अशोक 'आनन '
याद
अब भी आता है -
गांव ।
ज़िंदगी की सरल - सी परिभाषा ।
हृदय , आतिथ्य की अभिलाषा ।
निश्चल मन और जीवन सादा -
प्रेम सनी मीठी शहदीली भाषा ।
पितृ - सम
घनी -
बरगदी छांव ।
लिपे - पुते आंगन तुलसी के चौरे ।
वे अक्षती - कुमकुमी उजली भोरें ।
दहकी सुर्ख पलाशी - सी वे शामें -
नदियों की झुकी कजरारी वे कोरें ।
नद
पार करातीं -
नेह - नाव ।
आंगन की वे सतरंगीअल्पनाएं ।
संजा की नई - नई कल्पनाएं ।
गीत गाते वे अल्हड़ मौसम -
केसर सम महकतीं वे वंदनाएं ।
धूल में सने
मखमली -
पांव ।
*अशोक 'आनन '
मक्सी,जिला -शाजापुर (म. प्र)
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/ रचनाएँ/ समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.com
0 टिप्पणियाँ