*पुष्पा सिंघी , कटक
अनमनी साँझ
हवा के झोंके संग
नथुनों में समा गयी
चिर-परिचित गंध...!
मैंने देखा ~
पुरानी अलमारी का
अधखुला कपाट
जहाँ से झाँक रही
छोटी-बड़ी पुस्तकें...!
काँपते हाथों से
एक पुस्तक निकाली
पीले पन्ने पलटे
हँस पड़े आखर...!
समय-चक्र में
शब्द-भाव न बदले
मैं भी कहाँ बदली
अनकहा अर्थ समर्थ...!
सच !
हर युग में
पुस्तकें महकती हैं....!!
*पुष्पा सिंघी , कटक
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