*पुखराज पथिक
ओ रे पथिकवा ,
जीवन की बजरिया में प्यार की बंसुरीया बजाते रहना ,
ओ रे पथिकवा ओ रे पथिकवा ,
ओ रे पथिकवा आखों मे सपने बसाएंरखना ।
जिस रस्ते पर तुम निकले हो मंजिल बड़ी है दूर,
हार के अपनी राह न बदलना चाहे हो जाओ मजबूर ,
अपने असर को जमाए रखना ओ रे पथिकवा ।
संकट आए चाहे जितने या तुफां रस्ता रोके ,
कई मिलेंगे दर्द के मारे जाने कितने हीधोके ,
प्रीत से दिल को तू सजाएं रखना ओ रे पथिकवा ।
चलते चलते खो न जाना दुनियां के इस मेले मे ,
अपने आप को ढूंढ लेना जीवन के झमेले मे ,
आशा के दीपक तू जलाएं रखना ओ रे पथिकवा ।
ओ रे पथिकवा ओ रे पथिकवा ओ रे पथिकवा ।
*पुखराज पथिक,नागदा, उज्जैन
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