*उमा पाटनी 'अवनि'
चंचल मन के फव्वारों से
उम्मीदों के बाजारों से
तितलियाँ फुदकती हैं कुछ यूँ
विचारों की झनकारों से
बन-बन डोलूं क्या सोच रही
मैं जाने क्या-क्या खोज रही
कविताओं की नाव चलाती हूँ
भावनाओं की पतवारों से
भीग रही हूँ जो पल-पल
शब्दों की नदियों में होकर
अब राह तकूं किसको देखूँ
मिलती हूँ रोज बहारों से
भंवरों की गुन-गुन में थिरकूं
कोयल संग मैं भी बोल पड़ू
नज्म लिखूँ गाऊँ मैं गीत
नटखट बारिश की फुहारों से
अल्हड़ पागल सी दीवानी
सुध-बुध से भी मैं अंजानी
ओ अवनि तू नादान सही
खुदा बचाये समझदारों से
*उमा पाटनी 'अवनि'
उत्तराखण्ड,पिथौरागढ़
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