*प्रीति शर्मा "असीम"
इंसानियत को यूं ना शर्मशार कीजिए ।
जिंदगी मौत से जूझ रही है।
आपसी नफरतों में ,ना इसे शुमार कीजिए।
इंसानियत को यूं ना शर्मसार कीजिए।
कोई धर्म मारता नहीं है जिंदगियों को ,
ना धर्म के नाम पर यह व्यापार कीजिए।
जिंदगी नहीं दे सकते ,जो तुम किसी इंसान को।
अपने तंग दिमागों की सोच से,
कुछ तो सवाल कीजिए।
क्यों बंट गए लोग अलग-अलग जमातों में जमात बनके ।
अपनी इंसानियत का कुछ तो एहसास कीजिए।
*प्रीति शर्मा "असीम"
नालागढ़ हिमाचल प्रदेश
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/ रचनाएँ/ समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.com
0 टिप्पणियाँ