*अशोक 'आनन'
बस्ती - बस्ती खौफ़ है , घर - घर आदमख़ोर ।
ज़ान बचाकर आदमी , अब जाए किस ओर ?
गांवों में कर्फ़्यू पसरा , हुईं गली श्मशान ।
सुबह जहां वीरान - सी , शामें हैं सुनसान ।
बंद मिलीं ये खिड़कियां , बंद मिले सब द्वार ।
अब तो सारा शहर है , दहशत से बीमार ।
सूने - सूने शहर हैं , उजड़े - उजड़े गांव ।
दिल में सबके आज हैं , शक़ के गहरे घाव ।
चुप्पी की हैं बस्तियां , सन्नाटों के गांव ।
दहशत के ये रतजगे , बसा हृदय अलगाव ।
आंखों में हैं दहशतें , दिल में सबके घाव ।
जब से बस्ती में पड़े , ' कोरोना ' के पांव ।
'कोरोना ' के आतंक से , संशय में है ज़ान ।
बंद पड़े बाज़ार सब , सहमा है इंसान ।
*अशोक 'आनन
मक्सी जिला - शाजापुर ( म.प्र.)
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