*विक्रम कुमार
आओ एक दीप जलाएं हम, है दीप जलाने की बारी
अपने मन से, जीवन से , तम दूर भगाने की बारी
आओ एक दीप जलाएं हम, है दीप जलाने की बारी
अपनी इच्छाशक्ति में उत्कर्ष दिखाना है हमको
किया जो हमने कड़ा है वो संघर्ष दिखाना है हमको
अखंडता का ये जज्बा सहर्ष दिखाना है हमको
जग को इच्छाशक्ति का निष्कर्ष दिखाना है हमको
भूल के सारे राग-द्वेष है , एक हो जाने की बारी
आओ एक दीप जलाएं हम, है दीप जलाने की बारी
कई जंगों को लड़ता ये, परिवेश हमारा जीतेगा
पीडि़त सारी दुनिया में, संदेश हमारा जीतेगा
धीरज, धर्म व साहस ये, अशेष हमारा जीतेगा
पस्त महामारी होगी, ये देश हमारा जीतेगा
अपने अंदर से है ये विश्वास जगाने की बारी
आओ एक दीप जलाएं हम, है दीप जलाने की बारी
*विक्रम कुमार,मनोरा, वैशाली
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