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रेतीली नदियां



       

*अशोक ' आनन ' 

 

ग्रीष्म अंगीठी -

सुलगे अंगारे ।

 

झिलमिल करतीं -

रेतीली नदियां ।

जिनसे चुंधियातीं -

सूखी अंखियां ।

 

नैनों में -

धूल भरे गुब्बारे ।

 

बेड़ियों से जकड़ी -

अब हवाएं ।

लू  की  लपटें  - 

हरियाली  जलाएं ।

 

गर्मी  -

किरणों की बेंतें मारे !

 

गांव - शहर -

सन्नाटों के मेले ।

दिन भर बहते -

पसीने के रेले ।

 

उमस की पिनें-

चुभें शाम - सकारे ।

 

कलरव आतंकित -

डरा - डरा - सा ।

सुकून बचा न -

कहीं ज़रा - सा ।

 

पानी - पानी अब-

जल - कंठ पुकारें ।

 

*अशोक ' आनन ' 

मक्सी जिला - शाजापुर ( म. प्र.)

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