नेहा सुराना भंडारी
काश ज़िन्दगी सूरज की किरण सी होती
वेसे तो सफ़ेद पर चश्मे से देखो तो सतरंगी
जहाँ लाल सी अभिलाषा होती
और नीला सा अभिमान
जहाँ पीला रंग हँसी बिखेरता
और नीलम सा होता सम्मान
जहाँ नारंगी सी चंचलता भी होती
और दिल में हरी सी उड़ान
दानिश जो बेंगनी सा खिलता
बिना कोई शर्त या अनुमान
जहाँ अंधेरे में भी रोशनी बिखरी होती
जो आँखो की दहलीज़ पर चमक सी मिलती।
कभी कभी ख़ामोशी भी गा उठती
और कानो में सुर घोल देती
जब गुफ़्तगू करने के लिए लम्हे नहीं ढूँढने पड़ते
और हँसी के लिए लतीफ़ो के ग़ुलाम नहीं होते
जब काला रंग भी सितारों सी रात लगता
और रंगो का मेला भी पाक साफ़ होता।
*नेहा सुराना भंडारी
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