*बलजीत सिंह बेनाम
प्यार का मौसम गुज़रने से रहा
अश्क का दरिया ठहरने से रहा
दर्द का पंछी बहुत चालाक है
ख़ुदबख़ुद तो पर कतरने से रहा
जुर्म से ही जिसकी सुबहो शाम है
जुर्म वो तस्लीम करने से रहा
सात फेरे हैं लिए जब साथ में
मांग में तो मौत भरने से रहा
सिसकियाँ भर भर के रोती रोशनी
क़र्ब का सूरज बिखरने से रहा
*बलजीत सिंह बेनाम
103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
हाँसी:125033
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/ रचनाएँ/ समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.com
0 टिप्पणियाँ