*अंकुर सहाय 'अंकुर'
युग बीते!
कितने युग बीते ।।
घाव लगे अन्तस में गहरे,
सांसों पे यादों के पहरे।
आशा की मोती की खातिर ,
आकर हम कूलों पर ठहरे ।।
नेह कलश आंसू से भरते
सुख के सागर रीते-रीते ।
युग बीते! कितने युग बीते ।।
गहन तिमिर बादल धमकाए ,
बिजली चमके,आस जगाए।
अधर खिले स्मित की रेखा ,
काजल नैनों में बलखाए ।।
राह निहार रहे हैं तेरी
मरते-मरते ,जीते -जीते ।
युग बीते! कितने युग बीते ।।
भूल गए झूले सावन के,
रंग बदन के , रूप सजन के ।
और हिना की रची हथेली ,
सपने बचपन के, यौवन के।
प्रेम सुधा की प्यास बढ़ी है,
हालाहल नित पीते-पीते ।।
युग बीते! कितने युग बीते ।।
चाह मिलन की रही अधूरी,
धड़कन से धड़कन की दूरी ।
रखती है ये बैरी दुनिया ,
मुख में राम ,बगल में छूरी ।।
तार-तार जीवन की चादर,
रोज रहे हम सीते -सीते ।।
युग बीते! कितने युग बीते ।।
*अंकुर सहाय ''अंकुर''
ग्राम-पो0-खजुरी
जिला-आजमगढ़ उ0प्र0 मो.09454799898
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