*सुनील कुमार माथुर*
मै जब छोटी थी तब दादी
रोज एक कहानी सुनाया करती थी
मुझे अपनी गोदी में बैठाकर
वह कहा करती थी
बेटा ! तुम एक राजकुमारी हो
एक दिन एक राजकुमार आयेगा
और वह तुझे अपने साथ ले जायेगा
राजकुमार के संग
तू नाचेगी गायेगी और
मेरा यह घर आंगन सुना कर जायेगी
न जाने मेरी राजकुमारी का
राजकुमार कैसा होगा
उस वक्त मैं राजकुमारी का
अर्थ समझ न पायी थी लेकिन
आज जब इस सभ्य
कहे जाने वाले समाज में
कन्या भ्रूण की हत्या
उसे झाडियों में फैंक देना
उस मासूम को लावारिश छोड
देने की खबरे पढती हूं तो
दिल रो पडता है
मां तू इतनी निष्ठुर क्यों हो गयी
जिस राजकुमारी को तूने
अपने गर्भ में पालापोषा
अपने लहू से सींचा
आज उसी राजकुमारी को
दबाव में आकर मां
तूने उसे लावारिश छोड दिया
झाडियों में फैंक दिया
हे मां तूने क्या सोचकर ऐसा किया
मां उस राजकुमारी का क्या दोष था
बस उसका यही दोष था कि
वह मात्र कन्या भ्रूण था
मां जरा हिम्मत दिखाई होती तो
आज मेरी यह गति नहीं होती
मां के चरणों में जनत होती हैं
वह दया, करूणा, ममता की मूर्त है
फिर मां जब तूने मुझे जीवन दिया
तो फैंकने से पहले मुझ से
तू एक बार तो पूछ लेती कि
हे मेरी राजकुमारी
मेरी यह मजबूरी हैं
अब तू ही बता मैं क्या करूं तो
शायद मैं ही तुझे कोई मार्ग बताती
लेकिन तुने ऐसा न कर
अपने कलेजे के टुकडे को
यूं फैंक दिया मानों मैं
कोई इंसान नहीं हूं
मां तुने यह क्या कर दिया
तेरी जो भी मजबूरी रही होगी
वह तू ही जानती है लेकिन
आज समाज मुझ पर
जो व्यंग्य करते हैं
उसकी पीडा मैं ही जानती हूं
मां अब भी चेत जा
अपने कलेजे के टुकडे को
तु कभी मत फैकना
हो सके तो अपने प्राणों को
तु न्योछावर कर देना
मगर बच्ची को कभी भी
कचरे के ढेर में मत फैकना
बस मां मेरी हाथजोड कर
तेरे से यही विनती है
*सुनील कुमार माथुर
33 वर्धमान नगर शोभावतो की ढाणी खेमे का कुआ पालरोड जोधपुर राजस्थान
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