*अंकुर सहाय 'अंकुर'*
तुम्हारे बाद
बेबस यादें बोलीं
लौट आ जाना
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मुस्कुराकर
बरस गई आंखें
कोई न जाने
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आंख बिचारी
पथ निहार रही
मन चंचल ।
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पेट के लिए
बंधुआ मजदूर
नहीं बनना ।
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प्रेम के पन्ने
कोरे रह ही गए
ख़्वाब अधूरे ।
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आज की सीता
लेना चाहें राम की
अग्नि परीक्षा
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प्यार के मारे
सुहागन निंदिया
स्वप्न कुंवारे ।
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पायल बजी
बावरा मन चला
गांव की ओर ।।
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प्यार के बोल
मन की गांठें खोल
हैं अनमोल।।
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बोलते नेता
मारी जाती जनता
चलते जूते ।
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*अंकुर सहाय"अंकुर"
खजुरी(अहरौला), आजमगढ़
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