*सविता दास सवि*
बहुत खुश हो
आज तुम अपनी
उपलब्धियों पर
अब तो मानलो कि
किसी ने ये खुशी
तुम्हारे लिए
मांगी होगी
इतना इतराते हो
कुछ हासिल
करते हो जब
तुम क्या जानो
किसीने तुम्हारे लिए
ये दुआ की होगी
ऐसे चले जाते हो
उसके अस्तित्व को
नकारकर
मानो धुंआ हो
हाथ से झटक देने को
तुम क्या जानो
रास्तों से तुम्हारे
उसी ने काँटे
साफ की होगी
विश्वास उसका
अगाध है,अभिमान है
अपने प्रेम और
समर्पण पर
लौटोगे एकदिन
पास उसीके
दुनिया से हारकर
तुम क्या जानो
वक़्त कितना
निकल जाए
समझने में तुम्हे
कितनी देर होगी
अंजुरी भर खरा
अपनापन लिए
है वह
याचक जिसे
समझा तुमने
तुम क्या जानो
उसने शायद
तुम्हारी तुलना
देवों से की होगी
*सविता दास सवि,तेज़पुर,असम
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