*अजय कुमार द्विवेदी*
साम्प्रदायिकता बन्द हो ऐसा कुछ प्रबन्ध हो।
देश एक सन्घ हो मित्रों सा संबंध हो।
झुलस रहा है देश ये आपसी कलेश मे।
दुष्ट लुटते मजा दोस्तों के भेष मे।
जात धर्म कई यहाँ भाषा भी अनेक है।
पर एक साथ हो खड़े हम सब एक है।
हर दिन त्योहार हो खुशियों की बहार हो।
एक दुसरे के लिए सदैव हम तैयार हो।
झूठे और ढ़ोगियों की चलने ना दे नितियां।
बदलेगा देश बन्द होगी ए कुरीतियां।
देशहित के लिए हम आज बचनबद्ध हो।
बेटियों की रक्षा को खड़े बनके हम प्रचण्ड हो।
एक साथ पढ़ें गायें गीत गजल छन्द को।
एक साथ मिल के लिखें भारतीय निबंध को।
बदलेंगे हम तो बदलेगा देश भी।
प्रेम से रहेंगे खतम होगा ए कलेश भी।
*अजय कुमार द्विवेदी, दिल्ली
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